Karnavedha Sanskar: हिन्दू रिति-रिवाजों और वेदों के मुताबिक हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कार होते हैं। इन्हीं संस्कारों में से एक है कर्णवेध संस्कार, कर्ण वेध संस्कार को उपनयन संस्कार जिसे जनेऊ कहते हैं उससे पहले किया जाता है। इन संस्कारों को करने से पहले कई लोगों के मन में यह ख्याल आता है कि आखिर क्या होते हैं यह संस्कार और क्यों किए जाते हैं। हो सकता है कि आपके मन में भी यही सवाल होगा तभी आप इस आर्टिकल को पढ़ रहे हैं। तो चलिए जान लेते हैं कि आखिर क्या होता है। यह कर्णवेध संस्कार और किस तरह से इसे कब किया जाता है। हिन्दु धर्म संस्कारों में कर्ण वेध संस्कार को नवम् संसकार माना गया है। है। यह संस्कार कर्णेन्दिय में श्रवण शक्ति की वृद्धि, कर्ण में आभूषण पहनने तथा स्वास्थ्य रक्षा के लिये किया जाता है। विशेषकर कन्याओं के लिये तो कर्णवेध नितान्त आवश्यक माना गया है। इसमें दोनों कानों को वेध करके उसकी नस को ठीक रखने के लिए उसमें सुवर्ण कुण्डल धारण कराया जाता है। इससे शारीरिक लाभ होता है।
क्या और क्यों होता है कर्ण वेध संस्कार
कर्ण वेध संस्कार का मतलब होता है कान छिदवाने की संस्कार इस दौरान कान छिदवाने की परंपरा होती है। शास्त्रों के मुताबिक इस संस्कार को करने से दो फायदे होते हैं। इनमें से पहला लाभ यह होता है कि राहु और केतु से संबंधित सभी प्रभाव खत्म हो जाते हैं और दूसरा यह होता है कि इससे जिन बच्चों के कनछेदन किए जाते हैं उनकी स्वास्थ्य हमेंशा अच्छी रहती है। हालांकि कुछ लोग अपने हिसाब से कान छिदवाते हैं। कुछ लोग अपने एक कान को छिदवाते हैं तो कुछ लोग दोनों कानों को छिदवाते हैं। ज्यादातर लड़कियों के दोनों कानों को छिदवाने की परंपरा है। लड़कियों के दोनों कान इस लिए भी छिदवा दिए जाते हैं क्योंकि युवाअवस्था में आने के बाद वे कान श्रृंगार के लिए वह अपने कान छिदवाती ही हैं।
कब होता है कर्णवेध संस्कार
इस संस्कार के बारे में ऐसी मान्यता है कि इसे शिशु के जन्म के छठे, सातवें, आठवें, दसवें, बारहवें या सोलहवें दिन करवाया जाता है। बालक का कर्णछेदन करते समय पहले दाहिने और फिर बाएं कान को छेदते हैं तो कन्या के साथ बिल्कुल उल्टा है। कन्या का पहले बायां कान छेदा जाता है फिर दायां कान।
कर्ण वेध संस्कार के लिए सही मुहूर्त
• इस संस्कार के लिए मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा और पुनर्वसु अति शुभ माने जाते हैं। इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में आप यह संस्कार कर सकते हैं।
• कर्ण वेधन के दिन सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार में से कोई वार होना चाहिए।
• कर्ण वेध संस्कार के लिए चतुर्थ, नवम एवं चतुर्दशी तिथियों एवं अमावस्या तिथि को छोड़कर सभी तिथि शुभ मानी गयी है।
• वैसे तो सभी लग्न जिसके केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम) एवं त्रिकोण (पंचम, नवम) भाव में शुभ ग्रह हों तथा (तृतीय, षष्टम, एकादश) भाव में पापी ग्रह हों तो वह लग्न उत्तम कहा जाता है। यहां वृष, तुला, धनु व मीन को विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यदि बृहस्पति लग्न में हो तो यह सर्वोत्तम स्थिति कही जाती है।
किस मुहुर्त में ना कराएं कर्ण वेध संस्कार
खर मास, क्षय तिथि, हरिशयन (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक जन्म मास (चन्द्र मास) सम वर्ष (द्वितीय, चतुर्थ) इत्यादि को कर्ण-वेध संस्कार में त्याज्य किया जाना चाहिए। चन्द्र शुद्धि एवं तारा शुद्धि अवश्य की जानी चाहिए।
कुछ ऐसी चीजें जो कर्ण वेध संस्कार के दौरान ध्यान में रखनी चाहिए
कभी कान जानकार व्यक्ति(सुनार या डॉक्टर) से ही छिदवाएं, कई जगहों पर कान छेदने की प्रक्रिया तो मशीन के जरिए की जाती है। लेकिन अगर जानकारों की मानें तो यह प्रक्रिया हाथ से किया जाए तो ज्यादा बढ़िया होता है। आज कल कानों में एक नहीं बल्कि कई सारे छेद करने का चलन है। आपको बता दें कि ऐसा करना सही नहीं होता है। हमें कानों में नियमों के अनुसार एक ही छेद करवाना चाहिए। साथ ही कान छेदवाने के बाद उसमें सोना या चांदी ही धारण करें। नहीं तो कान के पकने का डर होता है। इसके बावजूद अगर कान पक जाए तो उसमें नीम के पत्ते की लकड़ी को घुसा लें। और समय-समय पर इसमें नारियाल का तेल लगाते रहें। लेकिन अगर जख्म नहीं सूकता है तो शीघ्र ही डॉक्टर से संपर्क करें। हालांकि 99 प्रतिशत मामलों में डॉक्टर के पास गए बिना ही जख्म सूख जाता है। कान को पकने से बचाने के लिए घरेलु नुस्खे के तौर पर इसमें नारियल तेल के साथ हल्दी मिलाकर भी लगा सकते हैं।
हमारे पूर्वज कान छिदवाने के तर्क के पीछे कई फायदों का भी जिक्र करते हैं जो कि निम्नलिखित है:-
• ऐसी मान्यता है कि कान छिदवाने से सुनने की क्षमता बढ़ जाती है।
• कान छिदवाने से आंखों की रौशनी भी सही रहती है।
• इससे बढ़ती उम्र के साथ तनाव से लड़ने में मदद मिलती है।
• इसके बारे में सबसे बड़ी बात यह कही जाती है कि कान छिदवाने से लकवा जैसी बिमारी का खतरा बहुत हद तक कम हो जाता है।
• कर्ण वेध संस्कार से बुरी शक्तियां व्यक्ति के आस-पास नहीं भटकती हैं और व्यक्ति दीर्घायु होता है।
• मस्तिष्क में रक्त संचार की प्रक्रिया को मजबूती मिलती है और व्यक्ति का दिमाग सही तरीके से काम करता है।
• जानकारों की मानें तो इससे हार्निया जैसी बिमारी खत्म होती है(इस बिमारी की शिकायत पुरूषों में होती है)
• कहा यह भी जाता है कि कर्ण वेध के द्वारा पुरुषों में अंडकोष और वीर्य के संरक्षण में भी लाभ मिलता है।
• कान छिदवाने से महिला तथा पुरुष दोनों के रूप में निखार आता है।
• कान छिदवाने से मेधा शक्ति बेहतर होती है तभी तो पुराने समय में गुरुकुल जाने से पहले कान छिदवाने की परंपरा थी।