Sadhvi Bhagawati Saraswati: भारतीय दर्शन और शाकाहार ने अमेरिका की एक युवती को कुछ इस कदर प्रभावित कर दिया कि जब 1996 में वे भारत घूमने के लिए आईं तो यहीं की वे हमेशा के लिए होकर रह गईं। ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन आश्रम को ही उसने हमेशा के लिए अपना ठिकाना बना लिया। साध्वी भगवती सरस्वती आज ऋषिकेश में रहकर महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम कर रही हैं। भारत आने से पहले अमेरिका में अपने जीवन के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत के बीच एक बहुत बड़ा फर्क उन्होंने ही देखा है। उनके मुताबिक अमेरिका में लोग हर चीज की शिकायत करते हुए नजर आते हैं। चाहे जीवनशैली की बात हो या फिर खाने-पीने की या फिर स्वास्थ्य सुविधाओं की, लेकिन भारत में उन्होंने देखा है कि यहां लोगों को परमात्मा पर बहुत भरोसा है। शिकायती जीवन से वे खुद को बहुत ही दूर रखते हैं। यही नहीं, शाकाहार पर भी उनका अटूट भरोसा है।
इन कामों में हैं व्यस्त (Sadhvi Bhagawati Saraswati Inspirational Story)
वर्तमान में साध्वी सरस्वती लगभग 49 साल की हो चुकी हैं। मनोविज्ञान में उन्होंने पीएचडी कर रखी है। दिव्य शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष के तौर पर भी काम कर रही हैं। उनका यह संगठन है न केवल महिलाओं को सशक्त बनाने में लगा हुआ है, बल्कि बच्चों को निशुल्क शिक्षा भी उपलब्ध करवा रहा है। ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलाइंस की अंतरराष्ट्रीय महासचिव की भी जिम्मेवारी साध्वी संभाल रही हैं। यह संगठन न केवल बच्चों को स्वच्छ जल उपलब्ध करवा रहा है, अपितु उनके बेहतर स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा के लिए भी काम कर रहा है।
साध्वी का परिचय (Sadhvi Bhagawati Saraswati Story)
अमेरिका के कैलिफोर्निया में फ्रैंक और सुजेन गारफील्ड के घर में साध्वी सरस्वती ने जन्म लिया था। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने पीएचडी करनी शुरू कर दी थी। भारत आने का अवसर उन्हें इसी दौरान मिला था। शुरू से ही वे अपने जीवन में शाकाहारी रही थीं, जिसकी वजह से उनके मुताबिक उन्हें अमेरिका में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। इसी बीच किसी ने उन्हें भारत में शाकाहार के बारे में बताया था, जिसे लेकर वे बहुत ही उत्साहित हो गई थीं और भारत आने का निश्चय उन्होंने कर लिया था।

भारत आने के बाद
आखिरकार वर्ष 1996 में साध्वी भारत आ गईं। उस वक्त उनकी उम्र करीब 25 साल की थी। भारत की यात्रा के दौरान उन्हें ऋषिकेश में स्वामी चिदानंद सरस्वती के परमार्थ निकेतन आश्रम में जाने का मौका मिला था। यहां वे उनसे बहुत प्रभावित हुई थीं। इसके बाद उनके मार्गदर्शन में उन्होंने वर्ष 2000 में संन्यास ले लिया। जब साध्वी के माता-पिता को इस बात की जानकारी मिली तो उन्हें दुख तो बहुत हुआ, मगर बाद में उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया। साध्वी आज न केवल आध्यात्मिक प्रवचन देकर लोगों का मार्गदर्शन कर रही हैं, बल्कि योग, ध्यान और जीवन जीने की कला जैसे विषयों पर भी वे प्रवचन देती हैं। दुनियाभर के 50 से भी अधिक देशों में अब उनके अनुयायी बन चुके हैं।
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महिलाओं के लिए
महिलाओं के कल्याण के लिए भी साध्वी भगवती सरस्वती काम कर रही हैं। उनका यह मानना है कि अपनी खुशी के लिए दूसरों पर महिलाओं को निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें अपने अंदर ही अपनी खुशी की तलाश करनी चाहिए। ध्यान करके ईश्वर में उन्हें अपने मन को एकाग्र करने की कोशिश करनी चाहिए। जिस भी काम में उन्हें खुशी मिलती है, पूरी एकाग्रता के साथ उस काम को उन्हें तल्लीन होकर करना चाहिए। साध्वी का मानना है कि महिलाओं को भी स्वस्थ रहने का, शिक्षित होने का और एक खुशहाल जीवन जीने का पूरा अधिकार है। एक नदी की तरह महिलाओं को आगे बढ़ते रहना चाहिए और रास्ते में आने वाली हर बाधा से पार पाते हुए अपना रास्ता खुद बना कर आगे बढ़ना चाहिए।