Bakra Eid in Hindi: इस्लाम धर्म में माने जाने वाले कैलेंडर आखिरी महीने की 10 तारीख को बकरा ईद का त्यौहार मनाने की रस्म है। इस साल भी इसी दिन बकरा ईद के त्योहार को मनाया जाएगा। जिसके लिए बाजारों में जोर-शोर से तैयारियां शुरू हो गई हैं। बकरा ईद का त्यौहार मनाए जाने के पीछे कई सारे नियम और कहानियां है। जिसके बारे में बेहद ही कम लोग जानते हैं। यहां तक कि लोगों को इस बात की भी जानकारी नहीं होती है कि बकरा ईद के मौके पर कुर्बानी देने की रस्म क्यों निभाई जाती है। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि बकरा ईद के मौके पर बकरे या किसी और जानवर की कुर्बानी क्यों दी जाती है। आखिर कुर्बान किए गए जानवर का पूरा गोश्त खुद अपने घर पर क्यों नहीं रख सकते हैं। साथ ही साथ यह भी जानते हैं कि शैतान पर पत्थर मारने की वजह क्या है और ईद एवं बकरा ईद में क्या फर्क है।
क्या है बकरा ईद की कहानी [Bakra Eid ki Kahani]
बकरा ईद का त्यौहार पूरी तरह से कुर्बानी पर टिका हुआ है। इस दिन बिना कुर्बानी के बकरा ईद मनाने का कोई मतलब ही नहीं होता। इस त्यौहार की पृष्ठभूमि कुछ ऐसी है कि हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की इच्छा को पूरी करने के लिए के उनके सामने अपने बेटे की कुर्बानी दे दी थी। बस यही से इस त्यौहार को मनाने की परंपरा शुरू होती है। हजरत इब्राहिम के बारे में कहा जाता है कि वह अल्लाह के प्रति इतना समर्पित थें कि उनके लिए कुछ भी कुर्बान करने और किसी भी चीज का बलिदान देने की क्षमता रहते रखते थे।
ऐसी कहानी है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेना चाही और उन्होंने इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपने सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी अल्लाह के सामने दें। हजरत इब्राहिम ने कहा कि मेरे लिए सबसे प्यारी चीज मेरा संतान मेरा खुद का बेटा है। मैं अल्लाह की राह में अपने बेटे को कुर्बान करने को तैयार हूं। कुर्बानी के वक्त बेटे का प्यार हजरत इब्राहिम के ऊपर हावी ना हो इस वजह से उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और अल्लाह का नाम लेते हुए उसके गले पर छुरी चला दी। लेकिन जब हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों के ऊपर से पट्टी को हटाया। तब उन्होंने देखा कि उनका बेटा उनके सामने जिंदा खड़ा है और उसकी जगह पर तुंबा (बकरे जैसा दिखने वाला एक जानवर) मरा पड़ा है। यही दिन था जिसके बाद से अल्लाह की राह में कुर्बानी देने के रस्म की शुरुआत हुई।
कुर्बानी के बाद क्यों बांट दिया जाता है गोश्त
बकरा ईद के मौके पर जिस भी जानवर की कुर्बानी होती है। रिवाज के अनुसार उसका पूरा गोश्त अकेला परिवार नहीं खा सकता। कुर्बान किए गए जानवर के गोश्त के 3 हिस्से होते हैं। जिसमें से एक हिस्सा गरीबों में बांटा जाता है। दूसरा हिस्सा अपने रिश्तेदारों और परिजनों में और तीसरा हिस्सा घर में रखा जाता है। जिस भी जानवर की कुर्बानी दी जाती है उस जानवर का स्वस्थ होना बेहद ही जरूर होते जरूरी होता है। ऐसी मान्यता है कि अगर वह जानवर बीमार है तो उसकी कुर्बानी, कुर्बानी नहीं मानी जाएगी। मान्यता यह भी है कि जानवर के शरीर पर जितने हैं ज्यादा बाल होते हैं उसी के बराबर संख्या में नेकियां कुर्बानी देने वाले के हिस्से में लिखी जाती है।
क्या है शैतान के ऊपर पत्थर फेंकने की परंपरा
जो लोग हज यात्रा पर जाते हैं वे इस दौरान यात्रा के आखिरी दिन कुर्बानी देने के बाद रमीजमारात पहुंचकर शैतान को पत्थर मारते हैं। इसके पीछे भी एक कहानी है जो हजरत इब्राहिम से जुड़ी हुई है। ऐसा कहते हैं कि जब हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही। तो इस दौरान शैतान ने उन्हें बरगलाने की कोशिश की। वह नहीं चाहता था कि हजरत इब्राहिम अपने बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बान करें। बावजूद इसके हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की मर्जी को पूरा किया। जिसके बाद से कुर्बानी और अल्लाह की राह में आने वाले शैतान के प्रतीकों को वहां पत्थर और कंकड़ मारते हैं।
क्या फर्क होता है ईद और बकरा ईद में
दरअसल ईद का त्यौहार रमजान महीने के खत्म होने पर आता है। रमजान वह महीना होता है जिसे इस्लाम धर्म में सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इसमें मुसलमान लगातार 30 दिनों तक रोजा रखते हैं और फिर आखरी दिन चांद को देखकर अपना रोजा तोड़ते हुए ईद मनाते हैं। इस दौरान खुशी में मिठाइयां और सेवइयां बनाई और बाटी जाती है। लेकिन बकरा ईद का त्यौहार इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने की 10 तारीख को मनाया जाने वाला त्यौहार है। इस दौरान किसी जानवर की कुर्बानी दी जाती है और गोश्त बनते हैं और खाने वालों के सामने गोश्त ही परोसे भी जाते हैं।