भारत में मूर्ति पूजन का पुराना इतिहास रहा है। लेकिन किसी विशेष आयोजन के दौरान अस्थाई तौर पर मूर्ति स्थापना का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। दरअसल ब्रिटिश काल में गणेश पूजा के दौरान गणेश प्रतिमा की स्थापना करने की शुरुआत बाल गंगाधर तिलक ने की थी। इस स्थापना के पीछे उनका मकसद था। लोगों को एक दूसरे से जोड़ना धार्मिक आयोजन करके व भाईचारा का संदेश देना चाहते थे और किसी विशेष समूह के लोगों को इकट्ठा करके एकता का प्रमाण देने का मक़सद रखते थें। लेकिन अगर गणपति विसर्जन की बात करें इसके पीछे कई सारी अलग-अलग कहानियां निकल कर आती हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत कथा सुनाने के बाद गणेश जी के तेज को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उन्हें सरोवर में डुबो दिया था।
क्या है गणपति के विसर्जन की कहानी
पौराणिक ग्रंथों में ऐसा लिखा गया है कि महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुनानी प्रारंभ कि, लगातार 10 दिन तक वेदव्यास जी के द्वारा सुनाए जा रहे महाभारत की कथा को गणेश जी सुनते रहे। एक तरफ वेदव्यास महाभारत की कहानी सुना रहे थे तो दूसरी तरफ गणेश जी उस कथा को लिख रहे थे। महाभारत की कथा को सुनाने के दौरान वेदव्यास जी ध्यान में चले गए थे और उन्होंने अपनी आंखों को बंद कर लिया था। कथा समाप्त होने के बाद जब वेदव्यास अपनी आंखों को खोलते हैं तो देखते हैं कि अत्यधिक मेहनत करने के कारण गणेश जी के शरीर का तापमान काफी बढ़ गया है और तेज के कारण वह जल रहे हैं। गणेश जी के शरीर का तापमान कम करने का जब कोई दूसरा रास्ता वेदव्यास को नहीं सूझा। तो उन्होंने पास के ही सरोवर में गणेश जी को डुबाने की तरकीब के बारे में सोचा और उन्हें लेकर वहां पहुंच गए। जिसके बाद उन्होंने गणेश जी को सरोवर के शीतल जल से स्नान करवाया। यह दिन अनंत चतुर्दशी का था। इसके बाद से ही गणेश चतुर्दशी के ठीक 10 दिन बाद अनंत चतुर्दशी को गणपति के प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है और यह चलन आज भी बरकरार है।
10 दिनों तक धूमधाम से की जाती है गणपति की पूजा
हर साल गणेश चतुर्दशी के दिन गणेश पूजा का आवाहन किया जाता है। पूरे देश भर में गणपति की प्रतिमा स्थापित की जाती है और उन्हें मनपसंद भोजन दिया जाता है। ताकि वह अपने भक्तों के मन की मनोकामना को पूरी कर सकें और उन पर अपनी कृपा बनाए रखें। इस दौरान गणपति को उनका प्रिय मोदक भी चढ़ाया जाता है। जिसे ग्रहण कर वह काफी प्रसन्न होते हैं। अंततः विधि-विधान के साथ दसवें दिन अनंत चतुर्दशी को गणपति का विसर्जन कर दिया जाता है। भगवान गणेश की पूजा वैसे तो पूरे देश में की जाती है। लेकिन गणेश चतुर्दशी के दौरान महाराष्ट्र में गणपति उत्सव बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहां गणपति के आगमन और विदाई दोनों ही वक्त जुलूस निकाले जाते हैं। भक्तों में इस दौरान काफी उल्लास रहता है।